•  
  •  
  •  
  •  
 

पूज्य साहित्य मनीषी आचार्य प्रवर श्री ज्ञान सागरजी म. सा.

 

 

पूर्व का नाम श्री भूरामल जी शास्त्री (शान्ति कुमार भी था)
पिता का नाम श्री चतुर्भुज जी छावड़ा
माता का नाम श्रीमती धृतवरी देवी जी छावड़ा
जन्म दिनांक 24 अगस्त 1897, सोमवार, भाद्रपद कृष्ण एकादशी, वि. सं.  1954
जन्म स्थान राणोली, जिला सीकर, राजस्थान।
लौकिक शिक्षा स्याद्वाद् विद्यालय बनारस में संस्कृत साहित्य एवं जैन दर्शन की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
ब्रह्मचर्यव्रत 26 जून 1947, गुरुवार (सातवीं प्रतिमा के रूप में), आषाढ़ शुक्ल अष्टमी वि. सं. 2004, अजमेर नगर में (आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से)
क्षुल्लक दीक्षा 25 अप्रैल 1955, सोमवार (अक्षय तृतीया), मन्सूरपुर मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश (दीक्षा उपरांत आपका नाम क्षुलक श्री ज्ञानभूषण जी हुआ ।)
ऐलक दीक्षा सन्-1957, वि. सं. 2014 आचार्य श्री देशभूषणजी महाराज से।
मुनि दीक्षा 22 जून 1959, सोमवार, आषाढ़ कृष्ण द्वितीया, वि. सं. 2016 खनिया जी की नसिया, जयपुर, राजस्थान।
दीक्षा गुरू आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज।
आचार्य पद 7 फरवरी 1969, शुक्रवार, फाल्गुन कृष्ण  5, वि. सं. 2025 नसीराबाद, अजमेर, राजस्थान।
दीक्षित शिष्यगण आचार्य श्री विद्यासागर जी, आचार्य कल्प श्री विवेकसागर जी, मुनि श्री विजयसागर जी, ऐलक श्री सन्मतिसागरजी, क्षुल्लक श्री आदिसागरजी, क्षुल्लक श्री स्वरूपानंदजी, क्षुल्लक श्री सुखसागर जी, क्षुल्लक श्री संभवसागर जी।
चारित्र चक्रवर्ती पद 20 अक्टूबर 1972 नसीराबाद में क्षुलक श्री स्वरूपानंदजी की दीक्षा के समय।
आचार्य पद त्याग 22 नवम्बर 1972, बुधवार, मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया, वि. सं. 2029 नसीराबाद, राजस्थान।
समाधि 1 जून 1973, शुक्रवार, ज्येष्ठ कृष्ण 15 अमावस्या वि. सं. 2030, प्रातः 10 बजकर 50 मिनिट पर नसीराबाद, अजमेर, राजस्थान।
साहित्य सृजन संस्कृत ग्रंथ : महाकाव्य  जयोदय (दो भाग), वीरोदय, सुदर्शनोदय, भद्रोदय, दयोदय (चम्पूकाव्य), मुनि मनोरंजनाशीति (मुक्तक काव्य), ऋषि कैसा होता है (मुक्तक काव्य) सम्यक्त्वसार शतक, प्रवचनसार प्रतिरूपक, शांतिनाथ पूजन विधान हिन्दी ग्रंथ : ऋषभावतार, गुणसुन्दर वृतान्त, भाग्योदय, जैन विवाह विधि, तत्त्वार्थसूत्र टीका, कर्तव्यपथ प्रदर्शन, विवेकोदय, सचित्त विवेचन, सचित्त विचार, देवागम स्तोत्र पद्यानुवाद साहित्य : नियमसार, अष्टपाहुड़, पवित्र मानव जीवन, स्वामी कुंद-कुंद और सनातन जैन धर्म, इतिहास के पन्ने, मानव धर्म, समयसार तात्पर्य वृत्ति टीका (दार्शनिक ग्रंथ हैं)

 

-----------------------------------------------------

Mail to : Ahimsa Foundation
www.jainsamaj.org
R150119